सूर्य अष्टकम | Surya Ashtakam

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वैदिक काल से ही भगवान सूर्य की पूजा का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में सूर्य को चल धन की आत्मा कहा गया है।

सूर्यतत्त्व स्थानभूष्ठ ऋग्वेद के वैदिक युग से लेकर आज तक सूर्य को सामाजिक प्रतिष्ठा, स्वाभिमान और कर्म आदि का कारक माना जाता है।

नवग्रहों में पहला ग्रह सूर्य है, जो पिता की भावनाओं और कार्यों का स्वामी माना जाता है। सूर्यदेव का यह पाठ आपके जीवन में व्यवसाय या शिक्षा से जुड़ी बाधाओं को दूर करता है।

जो लोग रोजगार पाना चाहते हैं, उन्हें मनचाही नौकरी नहीं मिल रही है, सरकारी नौकरी मिलने में दिक्कत आ रही है, उन लोगों को हर रविवार सुबह स्नान करके पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ सूर्याष्टकम का पाठ करना चाहिए।

तांबे के पात्र में जल लेकर सूर्यदेव को अर्जित करते समय इसका पाठ कर शकते हो।

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ २ ॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ३ ॥

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ४ ॥

बृंहितं तेजसां पुञ्जं वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ५ ॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ६ ॥

तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ७ ॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥ ८ ॥

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडाप्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दरिद्रो धनवान्भवेत् ॥ ९ ॥

आमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।
सप्तजन्म भवेद्रोगी जन्मजन्म दरिद्रता ॥ १० ॥

स्त्रीतैलमधुमांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।
न व्याधिः शोकदारिद्र्यं सूर्यलोकं स गच्छति ॥ ११ ॥

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