शिवाष्टकम्: प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं (Shiv Ashtakam)

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श्री शिव अष्टकम का पाठ ऋषि मार्कण्डेय जी ने लिखा था, यहा पर पाठको की सरलता के लिए माधवी मधुकर झा द्वारा प्रसारित विडियो को दिया गया है।

मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, शिव, शंकर, संभु, भगवान कौन हैं, हमारे जीवन के भगवान कौन हैं, विभु कौन हैं, दुनिया के भगवान कौन हैं, विष्णु (जगन्नाथ) के भगवान कौन हैं, जो हमेशा निवास करते हैं ख़ुशी, जो हर चीज़ को प्रकाश या चमक प्रदान करता है, जो जीवित प्राणियों का भगवान है, जो भूतों का भगवान है, और जो सभी का भगवान है।

शिव अष्टकम: प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथ नाथं सदानंद भाजाम् ।
भवद्भव्य भूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ 1 ॥

गले रुंडमालं तनौ सर्पजालं महाकाल कालं गणेशादि पालम् ।
जटाजूट गंगोत्तरंगैर्विशालं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ 2॥

मुदामाकरं मंडनं मंडयंतं महा मंडलं भस्म भूषाधरं तम् ।
अनादिं ह्यपारं महा मोहमारं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ 3 ॥

वटाधो निवासं महाट्टाट्टहासं महापाप नाशं सदा सुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं सुरेशं महेशं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ 4 ॥

गिरींद्रात्मजा संगृहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदापन्न गेहम् ।
परब्रह्म ब्रह्मादिभिर्-वंद्यमानं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ 5 ॥

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदांभोज नम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्धमानं सुराणां प्रधानं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ 6 ॥

शरच्चंद्र गात्रं गणानंदपात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णा कलत्रं सदा सच्चरित्रं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ 7 ॥

हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारं।
श्मशाने वसंतं मनोजं दहंतं, शिवं शंकरं शंभु मीशानमीडे ॥ 8 ॥

स्वयं यः प्रभाते नरश्शूल पाणे पठेत् स्तोत्ररत्नं त्विहप्राप्यरत्नम् ।
सुपुत्रं सुधान्यं सुमित्रं कलत्रं विचित्रैस्समाराध्य मोक्षं प्रयाति ॥

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