रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र | Shiv Tandav Stotram In Marathi

Also Read This In:- Bengali, English, Gujarati, Hindi, Kannada, Malayalam, Odia, Punjabi, Sanskrit, Tamil, Telugu.

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेवलंब्य लंबितां भुजंगतुंगमालिकाम् ।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ 1 ॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी-
-विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ 2 ॥

धराधरेंद्रनंदिनीविलासबंधुबंधुर
स्फुरद्दिगंतसंततिप्रमोदमानमानसे ।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगंबरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ 3 ॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।

मदांधसिंधुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ 4 ॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबंधुशेखरः ॥ 5 ॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिंगभा-
-निपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम् ।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसंपदेशिरोजटालमस्तु नः ॥ 6 ॥

करालफालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजयाधरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥ 7 ॥

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।

निलिंपनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥ 8 ॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा-
-विलंबिकंठकंदलीरुचिप्रबद्धकंधरम् ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥ 9 ॥

अगर्वसर्वमंगलाकलाकदंबमंजरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् ।

स्मरांतकं पुरांतकं भवांतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥ 10 ॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमश्वस-
-द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालफालहव्यवाट् ।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचंडतांडवः शिवः ॥ 11 ॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्रजोर्-
-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृष्णारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेंद्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥ 12 ॥

कदा निलिंपनिर्झरीनिकुंजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन् ।

विमुक्तलोललोचनो ललाटफाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम् ॥ 13 ॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥ 14 ॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः
शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ॥ 15 ॥

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *