शिव मानस पूजा | Shiv Manasa Puja In Hindi

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शिव मानस पूजा जब भी हम कोई धार्मिक अनुष्ठान जैसे यज्ञ, हवन आदि करते हैं तो उसमें समिधा, हवन सामग्री, घी, दूध, फल-फुल तथा भिन्न प्रकार की सामग्रियों की आवश्यकता होती है। किन्तु कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि हम सभी सामग्री जुटा पाना मुश्किल होता है।

जैसे की घरे से दूर होना, लंबी यात्रा पर होना, तब हम प्रतिदिन की भांति अपनी पूजा-पाठ नहीं कर पाते उस स्थिति में हम यात्रा करते हुये ही एक स्थान पर बैठकर ईश्वर की मानसिक आराधना कर सकते हैं।

श्री शंकराचार्य रचित इस शिव मानस पूजा स्तोत्र का पाठ करने से सभी सामग्री के बिना भगवान शिव की पूजा की जा सकती है इसीलिए इस स्तोत्र को प्रार्थनाके रूप में लिखा गया हैं।

पूज्य भाई श्री रमेशभाई ओझा का विडियो दिया है जिससे आपको पठन में सरलता रहे।

शिव मानस पूजा

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्यांबरं
नानारत्न विभूषितं मृगमदा मोदांकितं चंदनम् ।
जाती चंपक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम् ॥ 1 ॥

सौवर्णे नवरत्नखंड रचिते पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पंचविधं पयोदधियुतं रंभाफलं पानकम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूर खंडोज्ज्चलं
तांबूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु ॥ 2 ॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणा भेरि मृदंग काहलकला गीतं च नृत्यं तथा ।
साष्टांगं प्रणतिः स्तुति-र्बहुविधा-ह्येतत्-समस्तं मया
संकल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो ॥ 3 ॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोग-रचना निद्रा समाधिस्थितिः ।
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शंभो तवाराधनम् ॥ 4 ॥

कर चरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवण नयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्-क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभो ॥ 5 ॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा सम्पूर्णा ॥

शिव मानस पूजा का अर्थ

में अपने ह्रदय से भावना करता हूँ की हे दयानिधे! हे पशुपति देव संपूर्ण रत्नों से निर्मित इस सिंहासन पर आप बिराजमान है, और में आपको हिमालय के शीतल जल से मैं आपको स्नान करवा रहा हूं। स्नान के उपरांत रत्नजड़ित दिव्य वस्त्र आपको अर्पित कर रहा हु। केसर कस्तूरी में बनाया गया चंदन का तिलक आपके अंगों पर लगा रहा हूं। जूही, चंपा, बिल्वपत्र आदि की पुष्पांजलि आपको समर्पित है। सभी प्रकार की सुगंधित धूप और दीपक से आपको दर्शित करवा रहा हूं, आप इसका स्वीकार कीजिए ।

मैंने रत्न जडित स्वर्ण के पात्र में खीर, दुघ और दही सहित पांच प्रकार के स्वाद वाले व्यंजनों के संग कदलीफल, शर्बत, शाक, कपूर से सुवासित और स्वच्छ किया हुआ मृदु जल एवं ताम्बूल आपको मानसिक भावों द्वारा बनाकर प्रस्तुत किया है। है कल्याण करने वाले ! मेरी इस भावना को स्वीकार करें।

हे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा चला रहा हूँ। निर्मल दर्पण, जिसमें आपका स्वरूप सुंदरतम व भव्य दिखाई दे रहा है। वीणा, भेरी, मृदंग, दुन्दुभि आदि की मधुर ध्वनियां आपको प्रसन्नता के लिए बजाई जा रही हैं। स्तुति का गायन, आपके प्रिय नृत्य को करके मैं आपको साष्टांग प्रणाम करते हुए संकल्प रूप से आपको समर्पित कर रहा हूं। प्रभू ! मेरी यह विधि स्तुति की पूजा को कृपया ग्रहण करें।

हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी है। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैंरा सोना आपकी ध्यान समाधि है मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।

हे परमेश्वर! मेरे हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, कर्ण, नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध किए हैं, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सब पर आपकी क्षमापूर्ण दृष्टि प्रदान कीजिए। हे करुणा के सागर भोले भंडारी श्री महादेवजी, आपकी जय हो जय हो ।

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