रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha

रवि प्रदोष की व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था। उस ब्रह्मण की पत्नी प्रदोष व्रत विधिपूर्वक करती थी। एक दिन उस बेटा गांव से कहीं बाहर जा रहा था, तभी रास्ते में कुछ चोरों ने उसे घेर लिया।

चोरों ने उसकी पोटली छीन ली और उससे अपने घर के गुप्त धन के बारे में बताने को कहा। बालक ने कहा कि पोटली में रोटी के अलावा कुछ नहीं है और उसका परिवार बहुत ही गरीब है, उसके घर में कोई गुप्त धन नहीं है।

चोरों ने उसे छोड़ दिया और आगे बढ़ गए। वह बालक नगर में एक बरगद के पेड़ के नीचे छाए में सो गया। तभी राजा के सिपाही चोरों को खोजते हुए वहां आए और उस बालक को ही चोर समझ कर ले जाकर जेल में बंद कर दिया।

सूर्यास्त के बाद भी जब बालक घर नहीं पहुंचा तो उसकी मां परेशान हो गई। उस दिन वह प्रदोष व्रत का पालन कर रही थी। बालक की मां ने शिव पूजा के समय भोलेनाथ से प्रार्थना की कि उसका पुत्र कुशल हो, उसकी रक्षा करें।

भगवान शिव ने उस मां की पुकार सुन ली। फिर शिव जी ने राजा को स्वप्न में बालक को जेल से मुक्त करने का आदेश दिया। साथ ही कहा कि वह बालक निर्दोष है, उसे बंदी बनाकर रखोगे, तो तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा। अगले दिन सुबह राजा ने उस बालक को रिहा करने का आदेश दिया।

बालक राजदरबार में आया और उसने पूरी घटना राजा को बताई। इस पर राजा ने उसे माता पिता को दरबार में बुलाया। ब्रह्माण परिवार दरबार में बुलाए जाने के आदेश डरा हुआ था। जैसे-तैसे वे राजा के दरबार में गए। राजा ने कहा कि आपका पुत्र निर्दोष है, उसे मुक्त कर दिया गया है। राजा ने ब्राह्मण परिवार की जीविका के लिए पांच गांव दान कर दिए।

भगवान शिव की कृपा से वह ब्राह्मण परिवार सुखीपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। इस प्रकार से प्रदोष व्रत की महिमा का बखान किया गया है।

रवि प्रदोष व्रत की विधि

  1. प्रदोष व्रत करने के लिए त्रयोदशी के दिन सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
  2. नित्यकर्मों से निवृत्त होकर भागवान शिव की उपासना करनी चाहिए।
  3. इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है। पूरे दिन का उपवास करने के बाद सूर्य अस्त से पहले स्नान कर सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए।
  4. पूजन स्थल को गंगाजल और गाय के गोबर से लीपकर मंडप तैयार करना चाहिए। इस मंडप पर पांच रंगों से रंगोली बनानी चाहिए। पूजा करने के लिए कुश के आसन का प्रयोग करना चाहिए।
  5. पूजा की तैयारी करने के बाद उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुख कर भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए।
  6. पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊॅं नम: शिवाय’ का जप करते हुए शिव जी का जल अभिषेक करना चाहिए।

प्रदोष व्रत का माहात्म्य

प्रदोष अथवा त्रयोदशी का व्रत मनुष्य को संतोषी व सुखी बनाता है । इस व्रत से सम्पूर्ण पापों का नाश होता है । इस व्रत के प्रभाव से विधवा स्त्री अधर्म से दूर रहती है और विवाहित स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है ।

वार के अनुसार जो व्रत किया जाए , तदनुसार ही उसका फल प्राप्त होता है । सूत जी के कथनानुसार त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गाय – दान करने का फल प्राप्त होता है ।

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