जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha Hindi

जितिया व्रत की पूजा विधि

और फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं और उसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं।

इसके बाद दूसरे दिन सुबह-सवेरे स्‍नान के बाद महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं। व्रत के तीसरे दिन महिलाएं पारण करती हैं।

 जितिया व्रत में पूजा की थाली में अक्षत यानि चावल, पेड़ा, दूर्वा की माला, पान, लौंग, इलायची, सुपारी, श्रृंगार का सामान, सिंदूर पुष्प, गांठ का धागा, कुशा से बनी जीमूत वाहन की मूर्ति, धूप, दीप, मिठाई, फल, फूल, बांस के पत्ते, सरसों का तेल और खली होना आवश्यक है.

जितिया व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक गरुड़ और एक मादा लोमड़ी नर्मदा नदी के पास हिमालय के जंगल में रहते थे। दोनों ने कुछ महिलाओं को पूजा करते और उपवास करते देखा और खुद भी इसे करने की कामना की।

उपवास के दौरान, लोमड़ी को बहुत भूख लग गयी और वह जाकर चुपके से मरे हुए जानवर को खा लिया। दूसरी ओर, गरुड़ ने पूरे समर्पण के साथ व्रत का पालन किया और उसे पूरा किया।

अगले जन्म में दोनों ने मनुष्य रूप में जन्म लिया। गरुड़ के कई पुत्र हुए और वह सभी जीवित रहे। लेकिन सियार के पुत्र होकर मर जाते थे। इससे बदले की भावना से उसने गरुड़ के बच्चे को कई बार मारने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो गई।

बाद में गरुड़ ने सियार को अपने पूर्व जन्म के जितिया व्रत के बारे में बताया। इस व्रत से सियार ने भी संतान सुख प्राप्त किया। इस तरह यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए जगत में प्रसिद्ध हुआ।

जितिया व्रत जीमूतवाहन की कथा

इस कथा के अनुसार जीमूतवाहन गंधर्व के बुद्धिमान राजा थे। जीमूतवाहन शासक बनने से संतुष्ट नहीं थे और परिणामस्वरूप उन्होंने अपने भाइयों को अपने राज्य की सभी जिम्मेदारियां दीं और अपने पिता की सेवा के लिए जंगल में चले गए।

एक दिन जंगल में भटकते हुए उन्‍हें एक बुढ़िया विलाप करती हुई मिलती है। उन्‍होंने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा। इसपर उसने उसे बताया कि वह सांप (नागवंशी) के परिवार से है और उसका एक ही बेटा है।

एक शपथ के रूप में हर दिन एक सांप पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे का नंबर था।

उसकी समस्या सुनने के बाद ज‍िमूतवाहन ने उन्‍हें आश्‍वासन द‍िया क‍ि वह उनके बेटे को जीव‍ित वापस लेकर आएंगे। तब वह खुद गरुड़ का चारा बनने का व‍िचार कर चट्टान पर लेट जाते हैं।

तब गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े से ढंके हुए जिमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है। उसे हैरानी होती है क‍ि ज‍िसे उसने पकड़ा है वह कोई प्रति‍क्रिया क्‍यों नहीं दे रहा है।

तब वह ज‍िमूतवाहन से उनके बारे में पूछता है। तब गरुड़ ज‍िमूतवाहन की वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है।

मान्‍यता है क‍ि तभी से ही संतान की लंबी उम्र और कल्‍याण के ल‍िए ज‍ित‍िया व्रत किया जाने लगा।

जित‍िया व्रत की कथा महाभारत से

महाभारत युद्ध में पिता की मृत्‍यु के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित था। वह पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर गया और उसने पांच लोगों की हत्‍या कर दी।

उसे लगा कि उसने पांडवों को मार दिया लेकिन पांडव जिंदा थे। जब पांडव उसके सामने आए तो उसे पता लगा कि वह द्रौपदी के पांच पुत्रों को मार आया है।

यह सब देखकर अर्जुन ने क्रोध में अश्वत्थामा को बंदी बनाकर दिव्‍य मणि छीन ली। अश्वत्थामा ने इस बात का बदला लेने के लिए अभिमन्‍यु की पत्‍नी उत्‍तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने की योजना बनाई।

उसने गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, जिससे उत्तरा का गर्भ नष्‍ट हो गया।

लेकिन उस बच्चे का जन्म लेना बहुत जरूरी था। इसलिए भगवान कृष्‍ण ने उत्तरा के मृत बालक को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवत होने की वजह से इस तरह उत्तरा के पुत्र का नाम जीवितपुत्रिका और परीक्षित हुआ। तब से संतान की लंबी आयु के लिए जितिया व्रत किया जाने लगा।

जित‍िया व्रत कब है 2023?

6 अक्टूबर 2023

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