कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Kartik Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha
श्रीकृष्ण जी ने कहा कि “अपनी माता की बात सुनकर गणेश जी ने कहा कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का नाम संकटा है । उस दिन ‘पिंग’ नामक गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।”
कार्तिक संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि
प्रात: काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
श्री गणेश जी का पूजन पंचोपचार (धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, फूल) विधि से करें।
इसके बाद हाथ में जल तथा दूर्वा लेकर मन-ही-मन श्री गणेश का ध्यान करते हुये व्रत का संकल्प करें।
संध्या होने पर दुबारा स्नान कर स्वच्छ हो जायें।
श्री गणेश जी के सामने सभी पूजन सामग्री के साथ बैठ जायें। विधि-विधान से गणेश जी का पूजन करें।
प्रसाद के रूप में लड्डू अर्पित करें। चंद्रमा के उदय होने पर चंद्रमा की पूजा कर अर्घ्य अर्पण करें।
उसके बाद गणेश चतुर्थी की कथा सुने और सुनाये।
कार्तिक कृष्ण संकट चतुर्थी को घी और उड़द मिलाकर हवन करना चाहिए ।
तत्पश्चात् गणेशजी की आरती करें।
व्रत और पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन करा कर खुद मौन रह कर भोजन करें।
कार्तिक संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा
श्रीकृष्ण ने कथा सुनाते हुए कहा कि वृत्रासुर नामके राक्षसने त्रिभुवन को जीत कर सम्पूर्ण देवों को परतंत्र कर दिया।
उसने देवताओं को उनके लोकों से निष्कासित कर दिया।
तब सभी देव इन्द्र के नेतृत्व में भगवान विष्णु के शरणागत हुए।
देवों की बात सुनकर विष्णु ने कहा कि “समुद्री द्वीप में बसने के कारण वे (दैत्य) निरापद होकर उच्छृंखल एवं बलशाली हो गया हैं। पितामह ब्रह्माजी से किसी देवों के द्वारा न मरने का उसने वर प्राप्त कर लिया है। अत: आप लोग अगस्त्य मुनि को प्रसन्न करें। वे मुनि समुद्र को पी जायेंगे। तब दैत्य लोग अपने पिता के पास चले जायेंगे। आप लोग सुखपूर्वक स्वर्ग में निवास करने लगेंगे।”
ऐसा सुनकर सब देवगण अगस्त्य मुनि के आश्रम में गये और स्तुति द्वारा उन्हें प्रसन्न किया।
मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि हे देवताओं ! डरने की कोई बात नहीं है, आप लोगों का मनोरथ निश्चय ही पूरा होगा ।
मुनि की बात से सब देवता खुश हो गए।
इधर मुनि को चिंता हुई कि एक लाख योजन इस विशाल समुद्र का मैं कैसे पान कर सकूंगा?
तब ऋषि अगस्त्य को गणेशजी का स्मरण करने का विचार आया, संकट नाशक गणेश भगवान को कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के उत्तम अवसर पर गणेशजी के व्रत की विधिपूर्वक शरुआत की किया।
लगातार तीन महीने तक व्रत करने के बाद उन पर गणेशजी प्रसन्न हुए ।
उसी आशीर्वाद के प्रभाव से अगस्त्यजी ने समुद्र को आसानी से पीकर सुखा कर दिया।
समुद्र सुखा होने से दानव भागने लगे, बिना पानी के उसकी शक्ति कम पड़ने ने देवो ने उस पर जित हांसिल की
बाद में अगस्त्यमुनि ने पानी को वापस देकर समुद्र को हरा भरा कर दिया।
गणेशजी ने देवताओं की मदद की उस बात से पार्वती जी अत्यन्त प्रसन्न हुई।
कृष्ण जी कहते हैं कि हे “महाराज युधिष्ठिर ! आप भी चतुर्थी का व्रत किजिए । इसके करने से आप शीघ्र ही सब शत्रुओं को जीतकर अपना राज्यपा जायेंगे।”
श्रीकृष्ण के आदेशानुसार युधिष्ठिर ने गणेशजी का व्रत किया ।
व्रत के प्रभाव से उन्होंने कौरवो पर जीत हांसिल की और अपना राज्य प्राप्त किया।