पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi)
पापमोचनी एकादशी तिथि 2023 शुभ मुहूर्त
पापमोचनी एकादशी का शुभ मुहूर्त: 18 मार्च, प्रातः 08: 58 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक रहेगा।
पारण का समय: 19 मार्च, प्रातः 06: 28 मिनट से 08: 09 मिनट तक।
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर बोले- हे जनार्दन! चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है?कृपा करके आप मुझे बताइए।
श्री भगवान बोले हे राजन् – चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता हैं। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है।
इस पापमोचनी एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा महाराज! आप मुझसे चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए।
ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचनी एकादशी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता हैं।
इसकी कथा के अनुसार प्राचीन समय में चित्ररथ नामक एक रमणिक वन था। इस वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे।एक बार मेधावी नामक ऋषि भी वहाँ पर तपस्या कर रहे थे।
वे ऋषि शिव उपासक तथा अप्सराएँ शिव द्रोहिणी अनंग दासी (अनुचरी) थी। एक बार कामदेव ने मुनि का तप भंग करने के लिए उनके पास मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। युवावस्था वाले मुनि अप्सरा के हाव भाव, नृत्य, गीत तथा कटाक्षों पर काम मोहित हो गए।
रति-क्रीडा करते हुए 57 वर्ष व्यतीत हो गए।एक दिन मंजुघोषा ने देवलोक जाने की आज्ञा माँगी। उसके द्वारा आज्ञा माँगने पर मुनि को भान आया और उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि मुझे रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा ही हैं।
क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया।श्राप सुनकर मंजुघोषा ने काँपते हुए ऋषि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनिश्री ने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा।
और अप्सरा को मुक्ति का उपाय बताकर पिता च्यवन के आश्रम में चले गए। पुत्र के मुख से श्राप देने की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने पुत्र की घोर निन्दा की तथा उन्हें पापमोचनी चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी।
व्रत के प्रभाव से मंजुघोष अप्सरा पिशाचनी देह से मुक्त होकर देवलोक चली गई।अत: हे नारद! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, उसके सारों पापों की मुक्ति होना निश्चित है।
और जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है उसे सारे संकटों से मुक्ति मिल जाती है।
पापमोचनी एकादशी का महत्व
इससे वो अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने अप्सरा को श्राप देते हुए कहा कि तूने अपनी सुंदरता से मोहित करके मेरी तपस्या को भंग कराया है, इसलिए अब तू पिशाचिनी बन जा।
श्राप से दुखी अप्सरा ने ऋषि को बताया कि ये सब इंद्र के कहने पर किया है। इसमें उसका कोई दोष नहीं है। वो बार-बार ऋषि से श्राप मुक्ति की विनती करने लगी।
तब ऋषि मेधावी ने उस अप्सरा को पापमोचनी एकादशी के व्रत के बारे में बताया। इसके बाद मंजुघोषा ने ये व्रत पूरी श्रद्धा के साथ किया और वो श्राप से मुक्त हो गई।
कहा जाता है कि पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने से न सिर्फ व्यक्ति पापों से मुक्त होता है, बल्कि मृत्यु के पश्चात भगवद्धाम के लिए प्रस्थान करता है।
यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।
एकादशी पर करें इस विधि से पूजा
- प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- इसके भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और केले के पौधे में जल अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त होगा।
- इसके बाद पूजा स्थल में भगवान विष्णु का चित्र एक चौकी पर स्थापित कर उन पर पीले पुष्प अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होगी।
- पूजा के दौरान श्रीमद्भगवदगीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें।
- फिर 108 बार ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करें।
- ध्यान रहे कि एकादशी के दिन भूलकर भी तुलसी के पत्ते न तोड़ें।