इन्दिरा एकादशी व्रत कथा | Indira Ekadashi Vrat Katha
इंदिरा ग्यारस का शुभ मुहूर्त (Indira Gyaaras ka Shubh Muhurt)
10 अक्टूबर 2023, मंगलवार को इंदिरा एकादशी मानाइए जाती हे
इन्दिरा एकादशी व्रत पूजा विधि
- इंदिरा एकादशी का व्रत (Indira Ekadashi Vrat Katha) रखने वाले स्त्री व पुरूष को प्रात:काल जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर साफ वस्त्र धारण करे।
- जिसके बाद सूर्य भगवान (सत्यनारायण) को पानी चढ़ाकर पीपल व तुलसी के पेड़ में पानी चढ़ाऐ।
- इसके बाद अपने दोनो हाथे में थोड़ा जल व अक्षत, पुष्प लेकर इंदिरा ग्यारस व्रत का संकल्प करे।
- जिसके बाद भगवान शालीग्राम को तुलसी दल, रौली-मौली, धूप-दीप, उसी मौसम के फूल व फल, नैवद्य आदि अर्पित करके विधि पूर्वक पूजा करे।
- यदि किसी के घर में व्रत वाले दिन श्राद्ध है तो उसे अपने पितरों का श्रद्धा अनुसार पिडदान/श्राद्ध करे।
- संध्या होने से पहले व्रत का पारण करे ध्यान रहे व्रत में अन्न नही खाना चाहिए। तथा रात्रि को भगवान के नाम का जागरण करे।
- दूसरे दिन यानी द्वादशी वाले दिन ब्राह्मणें को भोजन करवाकर यथा शक्ति दान-दक्षिण देकर उन्हे प्रेम पूर्वक विदा करे। जिसके बाद स्वमं का भोजन ग्रहण करे।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था।
वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए।
राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।
सुख से बैठकर मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अंग कुशलपूर्वक तो हैं?
तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारा मन विष्णु भक्ति में तो रहता है?
देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुनकर राजा ने कहा- हे महर्षि!
आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल है और मेरे यहाँ यज्ञ कर्मादि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण कहिए।
तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो। मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की।
और उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया सो मैं तुम्हें कहता हूँ ?
उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्णा इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।
इतना सुनकर राजा कहने लगा कि हे महर्षि आप इस व्रत की विधि मुझसे कहिए।
नारदजी कहने लगे- आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नानादि से निवृत्त होकर पुन: दोपहर को नदी आदि में जाकर स्नान करें।
फिर श्रद्धापूर्व पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। प्रात:काल होने पर एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक ग्रहण करता हुआ प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूँगा।
हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष!
मैं आपकी शरण हूँ, आप मेरी रक्षा कीजिए, इस प्रकार नियमपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएँ और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसको सूँघकर गौ को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें।
रात में भगवान के निकट जागरण करें। इसके पश्चात द्वादशी के दिन प्रात:काल होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें।
नारदजी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि से यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे।
इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए। नारदजी के कथनानुसार राजा द्वारा अपने बाँधवों तथा दासों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गया।
राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गया। हे युधिष्ठिर! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा।
इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं। इति शुभम्
इंदिरा एकादशी का महत्व (Indira Ekadashi Importance)
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का संबंध भगवान विष्णु से है। ऐसा माना जाता है कि इंदिरा एकादशी का व्रत रखने वाले व्यक्ति को मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम में स्थान मिलता है।
इसके साथ ही साथ पितरों को मुक्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार, एकमात्र इंदिरा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को सदियों की तपस्या, कन्यादान और अन्य पुण्यों का बराबर फल मिलता है।
इसलिए इस व्रत को रखना बेहद खास माना जाता है। इस व्रत के बारे में ये भी कहा जाता है कि इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति के पितरों को नर्क लोक से मुक्ति मिलती है और वो मोक्ष प्राप्त कर हमेशा के लिए स्वर्गलोक की तरफ चले जाते हैं।