धनतेरस व्रत कथा (Dhanteras)

धनतेरस पूजा शुभ मुहूर्त 2023

धनतेरस पूजा मुर्हुत: 10 नवंबर की दोपहर 12:35 बजे से प्रारंभ होगी और 11 नवंबर की दोपहर 01:57 बजे तक रहेगा
प्रदोष काल: 06:02 PM से 08:00 PM तक
वृषभ काल: 06:18 से रात 08:13 PM तक

धनतेरस का महत्त्व

धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों में इस बारे में कहा है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती।

घरों में दीपावली की सजावट भी आज ही से प्रारम्भ हो जाती है। इस दिन घरों को स्वच्छ कर, लीप-पोतकर, चौक, रंगोली बना सायंकाल के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आवाहन किया जाता है।

इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन ख़रीदना शुभ माना गया है। इस दिन चांदी के बर्तन ख़रीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है।

इस दिन हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर लगातार तीन बार अपने शरीर पर फेरना तथा कुंकुम लगाना चाहिए।

कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए।

तुला राशि के सूर्य में चतुर्दशी व अमावस्या की सन्ध्या को जलती लकड़ी की मशाल से पितरों का मार्ग प्रशस्त होता हे।

धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi)

धनतेरस के दिन शाम के समय उत्तर दिशा में कुबेर, धन्वंतरि भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। पूजा के समय घी का दीपक जलाएं।

ओर कुबेर को सफेद मिठाई और भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई चढ़ाएं। पूजा करते समय “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” मंत्र का जाप करें।

फिर “धन्वन्तरि स्तोत्र” का पाठ करें,धन्वान्तारी पूजा के बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की भी पूजा करें।

भगवान गणेश और माता लक्ष्मी के लिए मिट्टी का दीपक जलाएं। उन्हें फूल चढ़ाएं और मिठाई का भोग लगाएं।

धनतेरस पर यम के नाम दीप जलाने की विधि : दीपक जलाने से पहले पूजा करें। किसी लकड़ी के बेंच या जमीन पर तख्त रखकर रोली से स्वास्तिक का निशान बनायें। फिर मिट्टी या आटे के चौमुखी दीपक को उस पर रख दें।

दीप पर तिलक लगाएं, चावल और फूल चढ़ाएं। चीनी डालें। इसके बाद 1 रुपये का सिक्का डालें और परिवार के सदस्यों को तिलक लगाएं।

दीप को प्रणाम कर उसे घर के मुख्य द्वार पर रख दें। ये ध्यान दें कि दीपक की लौ दक्षिण दिशा की तरफ हो। क्योंकि ये यमराज की दिशा मानी जाती है ओर ऐसा करने से अकाल मृत्यु टल जाती है।

धनतेरस व्रत कथा

कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया। तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं।

कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं,तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतुहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।

लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।

उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था,पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी।

अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।

एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो,फिर रसोई बनाना,तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया।

पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न,धन,रत्न,स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।
विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया।

तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।

तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीप-पोतकर स्वच्छ करना। रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और शायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना,मैं उस कलश में निवास करूंगी।

किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी। इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।

Q-1 हिन्‍दी पंचाग के अनुसार धनतेरस कब आती है।

कार्तिक महीने की कृष्‍णपक्ष त्रयोदशी (तेरस) को

Q-2 धनतेरस वाले दिन किस देवता की पूजा की जाती है।

भगवान धन्‍वतंरि, भगवान कुबेर व माता लक्ष्‍मी जी की पुजा की जाती हे

Q-3 धनतेरस त्‍यौहार पर क्‍या खरीदना शुभ माना जाता है।

धनतेरस त्‍यौहार वाले दिन सभी लोगो को सोना, चॉदी व पीतल आदि खरीदना चाहिए। यदि आपके पास इतने पैसे नहीं है की आप यह वस्‍तु खरीद सकते है तो आप स्‍टील का कोई भी बर्तन अवश्‍य खरीदे।

Q-4 धनतेरस का त्‍यौहार क्‍यों मनाया जाता है।

पुराणों के अनुसार कार्तिक मास की कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धनवंतरि जी प्रकट हुए थे। जिस समय ये प्रक्रट हुए थे उस समय देवता व राक्षस मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे। उस समय ये अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे और तभी से यह दिन धन्‍वंतरि जयंती अर्थात धनतेर त्‍यौहार के रूप में मनाया जाता है।

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